राँची
सीएजी रिपोर्ट पर बाबूलाल मरांडी का हमला, सरकार से श्वेतपत्र जारी करने की मांग
विपक्ष के आरोप – ‘आर्थिक कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और लूट’
राँची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार के पिछले कार्यकाल को ‘आर्थिक कुप्रबंधन और लूट’ करार दिया है। उन्होंने राज्य सरकार से वित्तीय अनियमितताओं पर श्वेतपत्र जारी करने की मांग की है।
मरांडी ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति गंभीर बनी हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2022 तक चिकित्सा अधिकारियों और विशेषज्ञों के 3,634 स्वीकृत पदों में से 2,210 पद खाली थे। सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की उपलब्धता भी 65% से 95% तक प्रभावित रही।
कोविड राहत कोष के इस्तेमाल पर सवाल
मरांडी ने आरोप लगाया कि कोविड-19 राहत के लिए केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धन का भी राज्य सरकार सही तरीके से उपयोग नहीं कर सकी। उन्होंने कहा,
“भारत सरकार ने कोविड प्रबंधन के लिए 483.54 करोड़ रुपये जारी किए थे, लेकिन झारखंड सरकार ने अपनी ओर से देय 272.88 करोड़ रुपये की पूरी राशि जारी नहीं की। कुल 756.42 करोड़ रुपये में से केवल 436.97 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया, जो कुल आवंटन का मात्र 32% था।”
सीएजी रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा कोविड राहत के लिए जारी 754.61 करोड़ रुपये में से 539.56 करोड़ रुपये ही फरवरी 2022 तक खर्च किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, अपर्याप्त धनराशि खर्च करने के कारण जिला स्तर पर आरटीपीसीआर प्रयोगशालाएं, मेडिकल ऑक्सीजन संयंत्र और शिशु चिकित्सा उत्कृष्टता केंद्र स्थापित नहीं किए जा सके।
उपयोगिता प्रमाण पत्र पर विवाद
भाजपा नेता ने राज्य सरकार पर 19,125 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा,
“सीएजी रिपोर्ट में दर्ज है कि वर्ष 2023-24 में झारखंड सरकार द्वारा सहायक अनुदान के रूप में दी गई 19,125.88 करोड़ रुपये की राशि के लिए 5,209 उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं किए गए। यह भ्रष्टाचार की आशंका को बढ़ाता है।”
महिला कर्मचारियों को ‘दूसरा बच्चा’ – सीएजी की रिपोर्ट में अजीबोगरीब दावा
रिपोर्ट में सरकारी योजनाओं में अनियमितताओं को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। सीएजी ने पाया कि बोकारो और धनबाद में ऐसी घटनाएं सामने आईं, जहां महिला कर्मचारियों को चार महीने के भीतर ‘दूसरी बार’ मातृत्व लाभ प्रदान किया गया।
मरांडी ने इसे ‘सरकारी योजनाओं में अनियमितता’ का एक और उदाहरण बताते हुए कहा कि इससे भ्रष्टाचार की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
आयुष्मान भारत और ‘अबुआ स्वास्थ्य योजना’ पर भी सवाल
भाजपा नेता ने राज्य सरकार की नई ‘अबुआ स्वास्थ्य योजना’ पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार ने इस योजना के तहत सालाना 15 लाख रुपये की चिकित्सा सहायता देने का वादा किया है, लेकिन इसके क्रियान्वयन की शर्तें इसे अप्रभावी बना सकती हैं।
“इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में 50 बेड और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 बेड वाले अस्पतालों को ही पात्र माना गया है। इससे पूरे राज्य में गिने-चुने अस्पताल ही इसका लाभ उठा सकेंगे, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी अस्पताल इस मानदंड पर खरा नहीं उतरता। इसका फायदा सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों को होगा।”
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया?
राज्य सरकार की ओर से फिलहाल इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, सरकार का तर्क रहा है कि कोविड प्रबंधन और स्वास्थ्य योजनाओं को लेकर सभी नीतियां जनहित को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं।
