
राँची
नई दिल्ली में एशिया के सबसे बड़े साहित्योत्सव में लहराया नागपुरी भाषा का परचम
साहित्योत्सव 2025, एशिया के सबसे बड़े साहित्य महोत्सव में डॉ. बीरेंद्र कुमार महतो ने नागपुरी भाषा का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने नागपुरी भाषा की समृद्ध विरासत, भाषाई स्वतंत्रता और सांस्कृतिक महत्व को उजागर किया।
रांची: नई दिल्ली के रवींद्र भवन में आयोजित साहित्योत्सव 2025 में झारखंड की नागपुरी भाषा को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का गौरव डॉ बीरेंद्र कुमार महतो को मिला। रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में सहायक प्राध्यापक डॉ महतो ने इस प्रतिष्ठित आयोजन में नागपुरी भाषा का प्रतिनिधित्व किया और कहा कि नागपुरी एक स्वतंत्र एवं समृद्ध भाषा है, जिसकी अपनी लिपि, व्याकरण और साहित्यिक परंपरा है।
नागपुरी भाषा की ऐतिहासिक जड़ें
डॉ महतो ने अपने वक्तव्य में कहा कि नागपुरी भाषा झारखंड की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है और इसे “बांसुरी की भाषा”, “गीतों की रानी” और “मांदर की भाषा” कहा जाता है। उन्होंने बताया कि 64वीं इस्वी में छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं ने इसे अपनी राजकाज की भाषा के रूप में अपनाया था, और 1947 तक यह झारखंड की राजभाषा बनी रही। अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों ने भी इसे अपने धर्म प्रचार के लिए अपनाया।
डॉ महतो ने यह भी बताया कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से नागपुरी एक स्वतंत्र भाषा है, जिसका अपना समृद्ध साहित्य, शब्दकोश और व्याकरण मौजूद है। झारखंड के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, नेपाल, उड़ीसा, बिहार, बांग्लादेश और अंडमान तक इस भाषा का विस्तार है। वर्तमान में करीब तीन करोड़ लोग इसे बोलते हैं और सादरी, सदरी, गंवारी, नगपुरिया जैसे स्थानीय नामों से पुकारते हैं।
नागपुरी भाषा की साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता
साहित्योत्सव में डॉ महतो ने नागपुरी भाषा की उत्पत्ति, विकास, महत्ता, क्षेत्र विस्तार और समय के साथ प्रयोग की गई विभिन्न लिपियों (कैथी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, रोमन और देवनागरी) के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “भाषा ही संस्कृति है और संस्कृति ही भाषा है। भाषा और संस्कृति का गहरा संबंध है, और नागपुरी भाषा इस विरासत की जीवंत कड़ी है।”
डॉ महतो ने “जागा झारखंडिया, पेयारा खंड, बेयाकुल आहयँ, चइल नि सकोना, बह तनी देइर, नावाँ उलगुलान और झारखंडक धरती महान” जैसी सात नागपुरी कविताओं का प्रभावी पाठ किया, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा। इस सत्र में नागपुरी के अलावा असमिया, मलयालम, पंजाबी, संस्कृत, तमिल और उर्दू भाषा के साहित्यकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं।
साहित्योत्सव 2025 – बहुभाषी साहित्य का महामंच
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्योत्सव 2025 एशिया का सबसे बड़ा साहित्यिक महोत्सव है, जिसमें इस वर्ष 100 सत्रों में 50 से अधिक भाषाओं के लगभग 700 साहित्यकारों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में बहुभाषी कवि और कहानी पाठ, युवा साहिती, आदिवासी कवि एवं लेखक सम्मेलन, मातृभाषाओं का महत्व, भारत की अवधारणा, भारतीय साहित्य में आत्मकथाएं, साहित्य और सामाजिक आंदोलन, और विदेशों में भारतीय साहित्य जैसे कई विषयों पर परिचर्चाएं और परिसंवाद हुए।
डॉ महतो को इस प्रतिष्ठित आयोजन में झारखंड की समृद्ध भाषाई परंपरा को प्रस्तुत करने का अवसर मिला, जिससे नागपुरी भाषा को एक नई पहचान और सम्मान प्राप्त हुआ।

