गुमला: गांव का एक आम सा दिन था। सूरज उगते ही अरमई गांव में रोज की तरह हलचल शुरू हो गई थी, लेकिन उरांव परिवार के घर में खामोशी थी। जब घरवालों ने देखा कि मोरहा उरांव घर में नहीं हैं, तो दिल में अजीब सा डर समा गया। खोजबीन शुरू हुई, और फिर वह दृश्य जिसे देखकर पूरा गांव सन्न रह गया—घर के पीछे आम के पेड़ से झूलता मोरहा का शरीर।
राइस मिल से मिली थी जीवन की उम्मीद, साइबर ठगी ने छीन ली
55 वर्षीय मोरहा उरांव मेहनती किसान थे। उन्होंने बड़ी उम्मीदों के साथ अपनी धान की फसल बेची थी, जिससे उन्हें 68 हजार रुपए मिले थे। यह रकम उनके परिवार के भविष्य का सहारा थी। लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। कुछ दिन पहले ही साइबर अपराधियों ने उनके बैंक खाते से एक-एक पैसा निकाल लिया। उनके पास अब कुछ भी नहीं बचा था।
बेटों की पढ़ाई, घर की जरूरतें, भविष्य की अनिश्चितता—इन सबने मोरहा को अंदर तक तोड़ दिया। रातों की नींद छिन गई, हर वक्त चिंता उनके चेहरे पर साफ दिखने लगी। आखिरकार, इस दर्द को सह न सके और जिंदगी खत्म करने का फैसला कर लिया।
आखिरी पर्ची में दर्द, माफी और एक संदेश
मोरहा उरांव ने आत्महत्या से पहले एक छोटा सा परचा लिखा था, जो उनकी जेब से मिला। उसमें लिखा था—
“साइबर ठगी का शिकार, भाई जगना, प्यारी झिमी… क्षमा करना… मोबाइल में मैसेज देखना… समझ जाना…”
यह चंद शब्द नहीं थे, यह उस असहाय किसान की चीख थी, जिसे किसी ने सुना ही नहीं।
गांव में पसरा मातम, प्रशासन से जवाब की उम्मीद
गांव के लोग स्तब्ध हैं। कोई कह रहा है, “सरकार इतनी डिजिटल दुनिया की बात करती है, लेकिन किसानों को ऐसे ठगों से बचाने के लिए क्या कर रही है?” तो कोई प्रशासन से गुहार लगा रहा है कि दोषियों को पकड़कर सख्त सजा दी जाए।
गुमला पुलिस मामले की जांच कर रही है, लेकिन एक सवाल जो इस घटना के बाद हर किसी के मन में उठ रहा है—क्या सिर्फ जांच और रिपोर्ट भर से मोरहा उरांव जैसे लोगों की जान बचाई जा सकेगी? क्या ठगी का शिकार हुए लोगों के लिए कोई सुरक्षा नहीं?
मोबाइल स्क्रीन पर एक क्लिक के साथ उड़ते पैसे अब सिर्फ जेब ही नहीं, जिंदगी भी निगल रहे हैं। मोरहा उरांव की मौत एक चेतावनी है—हमारे गांव, हमारे किसान, हमारी मेहनत को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने का समय आ चुका है। नहीं तो, कौन जाने अगला मोरहा कौन होगा?