रांची: झारखंड सरकार द्वारा जमशेदपुर को औद्योगिक नगर घोषित करने के फैसले पर राज्य विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष ने इस फैसले को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक करार देते हुए सरकार पर संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप लगाया।
विपक्ष का आरोप: ‘संविधान के खिलाफ फैसला’
विपक्ष के वरिष्ठ विधायक सरयू राय ने सरकार के फैसले को झारखंड नगरपालिका अधिनियम के खिलाफ बताते हुए कहा कि इस कानून के तहत औद्योगिक नगर का नेतृत्व उपायुक्त को करना चाहिए, लेकिन सरकार ने इसके लिए प्रभारी मंत्री को नियुक्त कर दिया है, जो नियमों के खिलाफ है।
सरयू राय ने यह भी कहा कि प्रस्तावित जमशेदपुर औद्योगिक नगर समिति में स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों को उचित स्थान नहीं दिया गया है। उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत स्थानीय स्वशासन के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया।
“सरकार का ये कदम लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है। इस तरह का फैसला संविधान के अनुरूप होना चाहिए,” राय ने कहा।
सरकार का बचाव: ‘सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन’
वहीं, शहरी विकास मंत्री सुदीव्य कुमार ने सरकार के फैसले को जायज़ ठहराते हुए कहा कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुरूप लिया गया है, जिसके तहत कानून संबंधी विवाद की स्थिति में अंग्रेजी पाठ को प्राथमिकता दी जाती है।
मंत्री ने यह भी दावा किया कि 2014 में टाटा स्टील और झारखंड सरकार के बीच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुए समझौते के आधार पर ही जमशेदपुर को औद्योगिक नगर घोषित करने का रास्ता साफ हुआ था।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित 27 सदस्यीय समिति में पर्याप्त जनप्रतिनिधित्व है, जिसमें छह सरकारी अधिकारी, 11 टाटा स्टील के सदस्य और जमशेदपुर के सांसद और विधायक शामिल हैं।
“यह समिति सरकार और उद्योग के बीच संतुलन बनाए रखने का काम करेगी,” मंत्री ने कहा।
विवाद जारी
हालांकि, विपक्ष सरकार की दलीलों से सहमत नहीं हुआ। सरयू राय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सिर्फ एक ‘समझौता’ करार देते हुए कहा कि यह संविधान के तहत निर्धारित प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकता।
विपक्ष ने सरकार से इस अधिसूचना को रद्द करने और नये सिरे से नियमों के अनुसार समिति के गठन की मांग की है।
झारखंड विधानसभा में यह मुद्दा राजनीतिक तनाव का कारण बना हुआ है, जिससे आने वाले दिनों में इस पर और विवाद गहराने की आशंका है।