राँची

राँची का पहाड़ी मंदिर बदहाल: दरारें, रिसाव और अतिक्रमण से आस्था संकट में

आस्था का केंद्र बदहाली का शिकार, दरारों से रिसता पानी, अतिक्रमण और अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेदार? खराब रखरखाव से मंदिर की स्थिति बिगड़ रही है। जलमीनार और कर्मियों के आवास जर्जर हैं, जबकि यज्ञशाला निर्माण के लिए पेड़ काटने की तैयारी हो रही है।

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राँची: झारखंड की धार्मिक आस्था का प्रतीक पहाड़ी मंदिर अपनी बदहाल स्थिति से जूझ रहा है। मंदिर की दीवारों में आई दरारें, पानी का रिसाव, अधूरे विकास कार्य और बढ़ते अतिक्रमण ने इसके अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रशासनिक अनदेखी और रखरखाव की कमी से यह ऐतिहासिक स्थल जर्जर होता जा रहा है।

मंदिर की दीवारों में दरारें, रिसते पानी से बढ़ता खतरा

मंदिर की दीवारों में आईं दरारें मामूली दिखती हैं, लेकिन बरसात में इनके जरिए पानी रिसने से मंदिर की संरचना कमजोर हो रही है। छज्जे टूटने लगे हैं, जिससे दुर्गा मंदिर और नाग देवता मंदिर को भी नुकसान हो रहा है। अग्निशमन की भी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

जलनिकासी व्यवस्था फेल, बढ़ रहा नुकसान

मंदिर के शीर्ष पर बारिश का पानी तो गिरता है, लेकिन उसकी सही निकासी नहीं होने से यह धीरे-धीरे रिसकर संरचना को कमजोर कर रहा है। जानकारों का कहना है कि वर्षों से इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे स्थिति और बिगड़ती जा रही है।

नौ साल से बिना उपयोग का तिरंगा पोल

2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पहाड़ी मंदिर में भव्य तिरंगा फहराया था, लेकिन कुछ वर्षों बाद इसे फहराना बंद कर दिया गया। तब से यह पोल बेकार खड़ा है, जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा।

अधूरा पड़ा गार्ड वॉल निर्माण, मिट्टी का कटाव जारी

पहाड़ी मंदिर परिसर में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए गार्ड वॉल बनाने का काम शुरू किया गया था, लेकिन यह आज तक पूरा नहीं हुआ। अधूरे निर्माण की वजह से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव तेज हो जाता है, जिससे पहाड़ी और वहां मौजूद वृक्षों को नुकसान पहुंच रहा है।

10 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण, प्रशासन बेखबर

पहाड़ी मंदिर 27 एकड़ क्षेत्र में फैला है, लेकिन इसमें से करीब 10 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण हो चुका है। इसे खाली कराने के कई प्रयास हुए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

मंदिर जीर्णोद्धार अधर में, लाखों की सामग्री गायब

2015 में मंदिर परिसर स्थित मुख्य हॉल को तोड़ दिया गया था, और इसके जीर्णोद्धार के लिए लोहे और अन्य निर्माण सामग्री का इंतजाम किया गया था। लेकिन विवादों के चलते काम शुरू नहीं हो सका, और अब वहां रखी हजारों टन सामग्री धीरे-धीरे गायब हो चुकी है।

जलमीनार और कर्मियों के आवास जर्जर

मंदिर परिसर में स्थित जलमीनार रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुका है। इसकी बाहरी दीवारों में भी दरारें पड़ चुकी हैं। वहीं, मंदिर कर्मियों के लिए बनाए गए आवास भी खंडहर में तब्दील हो गए हैं और लंबे समय से खाली पड़े हैं।

पूजन सामग्री से खाद निर्माण योजना ठप

मंदिर में चढ़ाए गए फूलों और बेलपत्र से खाद बनाने की योजना भी अधर में लटकी है। हर दिन चढ़ने वाली पूजा सामग्री को कचरे में फेंका जा रहा है, जिससे मंदिर परिसर में गंदगी बढ़ रही है। डस्टबिन की अनुपलब्धता के कारण श्रद्धालु सामग्री को इधर-उधर फेंकने को मजबूर हैं।

यज्ञशाला निर्माण के लिए काटे जा रहे पेड़

मंदिर परिसर में यज्ञशाला निर्माण के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही है। कुछ पेड़ काटे भी जा चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यज्ञशाला का निर्माण खाली स्थानों पर होना चाहिए, न कि प्राकृतिक हरियाली नष्ट करके।

सीढ़ियां जर्जर, बुजुर्गों और महिलाओं को परेशानी

मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से ऊपर जाने वाली सीढ़ियां भी जर्जर हो चुकी हैं, जिससे श्रद्धालुओं को चढ़ने-उतरने में कठिनाई होती है। विश्राम के लिए पर्याप्त बेंच नहीं हैं, जिससे बुजुर्गों और महिलाओं को कठिनाई होती है। वर्षों से लिफ्ट लगाने की योजना बन रही है, लेकिन अब तक इसे पूरा नहीं किया गया है।

क्या मिलेगा समाधान?

रांची का पहाड़ी मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह शहर की पहचान भी है। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही, रखरखाव की कमी और अनियोजित विकास के कारण इसकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इस ऐतिहासिक मंदिर के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएंगे, या फिर यह बदहाली का शिकार होता रहेगा?

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